Maa Jaisa Koi Nahi ❤️❤️

 माँ की वो रसोई....


मेरी माँ की वो रसोई..

जिसको हम किचन नहीं

चौका कहते थे.... 


माँ बनाती थी खाना

और हम उसके आस पास रहते थे....


माँ ने

उस 4x4 के कोने को

बड़े सलिखे से सजाया था

कुछ पत्थर और कुछ तख्ते जुगाड़ कर एक मॉडुलर किचन बनाया था....


माँ की उस रसोई में

खाने के साथ प्यार भी पकता था....

कोई नहीं जाता था दर से खाली वो चूल्हा सबका पेट भरता था....


माँ कभी भी बिन नहाये

रसोई में ना जाती थी , चाहे कितनी भी सर्दी हो गहरी....


माँ सबसे पहले उठ जाती थी

जो भी पकता था रसोई में ,

माँ भगवान् का भोग लगाती थी....


फिर कही जाकर

हमारी बारी आती थी....


उस सादे खाने में

प्रसाद सा स्वाद होता था पकता था जो भी

बहुत ज्यादा, उसमें प्यार होता था ....


पहली रोटी गाय की

दूसरी कुत्ते के नाम की बनती थी....

कंही कोई औचक आ गया द्वारे...ये सोच कर कुछ रोटियाँ बेनाम भी पकतीं थीं....


रसोई के उन चंद डिब्बोँ और थैलों में , ना जाने कितनी जगह होती थी.....

भरे रहते थे सारे डिब्बे चाहे कितनी भी मंदी होती थी....


कुछ डिब्बे चौके के

महमानों के आने पर ही खुलते थे और हम सारे के सारे , रोज उन डिब्बों के इर्द गिर्द ही मिलते थे....


हर त्यौहार करता था इन्तेजार 

हर बात कुछ ख़ास होती थी ,कभी मठ्ठी कभी गुंजिया

कभी घेबर की मिठास होती थी....


माँ सबको गर्म गर्म खिलाकर

खुद सारा काम कर ,आखिर में अक्सर खाती थी.....


सबको परोसती थी ताज़ा खाना वो , उसके हिस्से अक्सर बासी रोटी ही आती थी....


बहुत कुछ बदला माँ के उस चौके में....

चूल्हा , स्टोव और फिर गैस आ गयी...

ढिबरी लालटेन हट गयीं सारी

और फिर रोशन करने वाली ट्यूब लाइट आ गयी....


#नहीं बदला तो माँ के हाथों का वो अनमोल स्वाद....

जो अब भी उतना ही बेहिसाब होता है...

कोई नहीं दूर तक मुकाबले में उस स्वाद के , वो संसार में सबसे अनोखा और लाजवाब होता है.....


अब भी अक्सर

माँ का वो पुराना चौका 

बहुत याद आता है ,अजीब सा सुकूं भरा एहसास होता है , मुँह और आँख दोनों में पानी आ जाता है....


मेरी माँ की वो रसोई..

जिसको हम किचन नहीं

चौका कहते थे....

माँ बनाती

Maa Jaisa Koi Nahi ❤️❤️

थी खाना

और हम उसके आस पास रहते थे....


सभी माँओं को समर्पित🙏 😍🤗

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